किसी ने ठीक ही कहा है कि "यदि लोग खुद पर भरोसा करना सीख जाएं, तो वे स्वयं के बारे में सोची गई काबलियत से कहीं अधिक उपलब्धियां हांसिल कर सकते हैं।" परन्तु अफसोस इस बात का है इस दुनिया में ज्यादातर लोग खुद कम काबिल एवं अपनी कमियों को बढा कर देखने के आदी हो गए हैं , जिसके कारण वे अपनी जिन्दगी की मंजिल तक नहीं पहुंच पाते हैं।
ऎसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि इस संसार में उन व्यक्तियों की सख्त जरूरत हैं, जो अपने शब्दों और क्रियाओं से दूसरों में जोश भर सकें और उन्हें कुछ बडा करने की भावनाओं से ओत-प्रोत कर सकें। पुराने समय में भी सेना के साथ चारण भाट आदि चला करते थे, जो अपनी जोशीली रचनाओं से सैनिकों में जोश भरा करते थे।
आज के समय में भी बैण्ड किसी भी देश की आर्मी का एक अभिन्न अंग है। उत्साह बढाने को आजकल चीयर लीडिंग की भी संज्ञा दी जाती है और इसका खेलों में जबरदस्त इस्तेमाल हो रहा है।
खेलों में कुछ लोग अपनी विशेष क्रियाओं से दर्शकों और अपनी टीम को अच्छी परफॉर्मेस के लिए उत्साहित करते हैं। कहते हैं कि इसका पहला प्रयोग अमरीका में 1880 के अन्त में एक स्कूल के एथलेटिक प्रतियोगिता में किया गया था। इस प्रतियोगिता में दर्शकों की ओर से बारी-बारी बोले गए विशेष नारों ने टीम का बेहद उत्साहवर्धन किया और टीम ने अच्छे परिणाम भी दिखाए।
सन् 1898 में अमरीका की मिनेसोटा यूनिवर्सिटी के एक स्टूडेंट ने अपने कुछ सहायकों के साथ फुटबाल मैंच में जबरदस्त चीयर लीडिंग करी और दर्शकों के साथ खिलाडियों का दिल जीत लिया। फिर क्या था अब तो तकरीबन प्रत्येक टुर्नामेंट में चीयर लीडिंग करने की होड सी लग गई। प्रारम्भ में चीयर लीडिंग के लिए छ: पुरूषों की टीम होती थी, परन्तु 1923 के बाद से इसमें लडकियों ने भी भाग लेना प्रारम्भ कर दिया। आज इसमें अधिकतर लडकियां ही भाग लेती हैं।
धीरे-धीरे इस चीयर लीडिंग एक्टिविटी में डांस, जिम्नास्टिक, टम्बलिंग आदि का भी जमकर समावेश हुआ। चीयर लीडर्स की यूनीफॉर्म और अधिक आकर्षक होती चली गई। आकर्षक होने की होड में कुछ ग्लैमर के इनपुट आने से यह कई जगह एक मोरल इश्यू भी बन गया। परन्तु अभी भी यह संसार के कई प्रतिष्ठित टुर्नामेंट का एक अभिन्न अंग है जिसमें अब ट्वन्टी-ट्वन्टी क्रिकेट मैच भी शामिल हो गए हैं।
अमरीका में तो नेशनल चीयर लीडर्स एसोशियन के नाम से एक संस्था भी है। संसार की "वल्र्ड चीयर लीडिंग एसोशियन" प्रतिष्ठित टी.वी. चैनलों के सहयोग से चीयर लीडिंग के टुर्नामेंट भी कराती है, जिसमें लाखों लोग पार्टिसिपेट करते हैं। आज संसार में "चीयर लीडिंग" एक इण्डस्ट्री बन चुका है। जिसमें जिम्नास्टिक, डांस, कोरियोग्राफी, फिटनेस आदि सीखाई जाती हैं। कई दुकान वाले चीयर लीडिंग से संबंधित जूते, ड्रेसेज, बुक्स आदि बेचकर धन बटोर रहे हैं। भारत में इसका क्या असर रहेगा, यह तो समय ही बताएगा, परन्तु इसका स्कोप जबरदस्त है।
आज के समय में भी बैण्ड किसी भी देश की आर्मी का एक अभिन्न अंग है। उत्साह बढाने को आजकल चीयर लीडिंग की भी संज्ञा दी जाती है और इसका खेलों में जबरदस्त इस्तेमाल हो रहा है।
खेलों में कुछ लोग अपनी विशेष क्रियाओं से दर्शकों और अपनी टीम को अच्छी परफॉर्मेस के लिए उत्साहित करते हैं। कहते हैं कि इसका पहला प्रयोग अमरीका में 1880 के अन्त में एक स्कूल के एथलेटिक प्रतियोगिता में किया गया था। इस प्रतियोगिता में दर्शकों की ओर से बारी-बारी बोले गए विशेष नारों ने टीम का बेहद उत्साहवर्धन किया और टीम ने अच्छे परिणाम भी दिखाए।
सन् 1898 में अमरीका की मिनेसोटा यूनिवर्सिटी के एक स्टूडेंट ने अपने कुछ सहायकों के साथ फुटबाल मैंच में जबरदस्त चीयर लीडिंग करी और दर्शकों के साथ खिलाडियों का दिल जीत लिया। फिर क्या था अब तो तकरीबन प्रत्येक टुर्नामेंट में चीयर लीडिंग करने की होड सी लग गई। प्रारम्भ में चीयर लीडिंग के लिए छ: पुरूषों की टीम होती थी, परन्तु 1923 के बाद से इसमें लडकियों ने भी भाग लेना प्रारम्भ कर दिया। आज इसमें अधिकतर लडकियां ही भाग लेती हैं।
धीरे-धीरे इस चीयर लीडिंग एक्टिविटी में डांस, जिम्नास्टिक, टम्बलिंग आदि का भी जमकर समावेश हुआ। चीयर लीडर्स की यूनीफॉर्म और अधिक आकर्षक होती चली गई। आकर्षक होने की होड में कुछ ग्लैमर के इनपुट आने से यह कई जगह एक मोरल इश्यू भी बन गया। परन्तु अभी भी यह संसार के कई प्रतिष्ठित टुर्नामेंट का एक अभिन्न अंग है जिसमें अब ट्वन्टी-ट्वन्टी क्रिकेट मैच भी शामिल हो गए हैं।
अमरीका में तो नेशनल चीयर लीडर्स एसोशियन के नाम से एक संस्था भी है। संसार की "वल्र्ड चीयर लीडिंग एसोशियन" प्रतिष्ठित टी.वी. चैनलों के सहयोग से चीयर लीडिंग के टुर्नामेंट भी कराती है, जिसमें लाखों लोग पार्टिसिपेट करते हैं। आज संसार में "चीयर लीडिंग" एक इण्डस्ट्री बन चुका है। जिसमें जिम्नास्टिक, डांस, कोरियोग्राफी, फिटनेस आदि सीखाई जाती हैं। कई दुकान वाले चीयर लीडिंग से संबंधित जूते, ड्रेसेज, बुक्स आदि बेचकर धन बटोर रहे हैं। भारत में इसका क्या असर रहेगा, यह तो समय ही बताएगा, परन्तु इसका स्कोप जबरदस्त है।
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