कहते हैं कि आदमी की सोच ही उसकी जीवन की दिशा तय कर देती है। ऐसे मे कितना अच्छा होता अगर हर इंसान अपने साथ हुई केवल मीठी और सुखद बातों को ही याद रख पाता, दुख-दर्द पहुंचाने वाली तमाम बुरी बातों को भूल जाता।
हालांकि जज्बातों के स्तर पर हर चोट और कड़वे अनुभव को भुला पाना आसान नहीं हैं लेकिन साइंस अपनी पूरी कोशिश में लगी है अगर कामयाब रही, तो एक दिन ऐसा मुमकिन हो सकता है। तब शायद सिनेमा के पर्दे पर मोहब्बत के मारे किसी हीरो को अपना गम गलत करने के लिए बोतल का सहारा नहीं लेना पड़ेगा। लेकिन साइंस यह करेगी कैसे? जानी-मानी साइंस मैगजीन साइंस डेली में इस बारे में छपी एक रिपोर्ट पर नजर डालें, तो गुत्थी कुछ सुलझती नजर आती है।
दरअसल, इंसानी दिमाग सूचनाओं को इकट्ठा करने और उन सूचनाओं की प्रोसेसिंग करने में कंप्यूटर की तरह फंक्शन करता है। कंप्यूटर में इन दोनों भूमिकाओं के लिए अलग-अलग डिवाइस होते हैं। जहां कंप्यूटर का हार्ड डिस्क सूचनाएं इकट्ठा करता है, वहीं इसका सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (सीपीयू) इन्फर्मेशन प्रोसेसिंग का काम करता है। लेकिन जहां तक हमारे मस्तिष्क का सवाल है, माना जाता है कि उसके अंदर मौजूद एक ही सेल के अंदर ये दोनों काम होते हैं। इस सेल को हम 'न्यूरॉन्स' के नाम से जानते हैं। रिसर्चर इस बात का पता लगाने की कोशिश में जुटे हैं कि क्या बेन सेल्स के अंदर पाए जाने वाले अलग-अलग किस्म के मॉलिक्यूल (अणु) अलग-अलग तरह की भूमिकाएं निभाते हैं?
अमेरिका के न्यू यॉर्क स्थित सनी डाउनस्टेट मेडिकल सेंटर के रिसर्चरों ने ऐसी रिसर्च की है, जिससे आने वाले वक्त में दिमाग से दुख भरी यादों और किसी चीज की लत को खत्म करने की क्षमता पैदा हो सकती है। रिसर्चरों ने पाया है कि मेमरी को सुरक्षित रखने वाला मॉलिक्यूल पीके जीटा विशेष रूप से जटिल और हाई कैटिगरी की मेमरी को स्टोर करता है जो किसी प्राणी की स्थिति, डर और कामों के बारे में विस्तृत सूचनाएं मुहैया कराता है। लेकिन पीके जीटा मॉलिक्यूल का इन सूचनाओं की प्रोसेसिंग करने या इसे व्यक्त करने की क्षमता पर नियंत्रण नहीं होता। यह खोज संकेत देती है कि पीके जीटा मॉलिक्यूल ब्रेन की कंप्यूटिंग क्षमता को बरकरार रखते हुए दिमाग से कड़वी यादों को मिटाने में मददगार साबित हो सकता है।
इस स्टडी के नतीजे विस्तार से पब्लिक लाइब्रेरी ऑफ साइंस बायॉलजी के दिसंबर अंक में छपे हैं। इस पेपर को तैयार करने वाले साइंटिस्टों में एक डॉक्टर फेंटन के अनुसार, अगर आगे इस दिशा में रिसर्च कामयाब रही तो हम भविष्य में पीके जीटा मेमरी इरेजर के आधार पर दिमाग से बुरी यादों को मिटाने वाली कई थेरपी ढूंढ पाएंगे। लोगों के मन से नकारात्मक यादों को खत्म कर देने से उन्हें न केवल दुखद यादों से छुटकारा मिल पाएगा बल्कि यह डिप्रेशन, सामान्य रूप से पैदा होने वाली चिंता, फोबिया, सदमे के बाद पैदा होने वाली स्ट्रेस और ऐडिक्शन का इलाज करने में भी मददगार साबित होगा।
दरअसल, इंसानी दिमाग सूचनाओं को इकट्ठा करने और उन सूचनाओं की प्रोसेसिंग करने में कंप्यूटर की तरह फंक्शन करता है। कंप्यूटर में इन दोनों भूमिकाओं के लिए अलग-अलग डिवाइस होते हैं। जहां कंप्यूटर का हार्ड डिस्क सूचनाएं इकट्ठा करता है, वहीं इसका सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (सीपीयू) इन्फर्मेशन प्रोसेसिंग का काम करता है। लेकिन जहां तक हमारे मस्तिष्क का सवाल है, माना जाता है कि उसके अंदर मौजूद एक ही सेल के अंदर ये दोनों काम होते हैं। इस सेल को हम 'न्यूरॉन्स' के नाम से जानते हैं। रिसर्चर इस बात का पता लगाने की कोशिश में जुटे हैं कि क्या बेन सेल्स के अंदर पाए जाने वाले अलग-अलग किस्म के मॉलिक्यूल (अणु) अलग-अलग तरह की भूमिकाएं निभाते हैं?
अमेरिका के न्यू यॉर्क स्थित सनी डाउनस्टेट मेडिकल सेंटर के रिसर्चरों ने ऐसी रिसर्च की है, जिससे आने वाले वक्त में दिमाग से दुख भरी यादों और किसी चीज की लत को खत्म करने की क्षमता पैदा हो सकती है। रिसर्चरों ने पाया है कि मेमरी को सुरक्षित रखने वाला मॉलिक्यूल पीके जीटा विशेष रूप से जटिल और हाई कैटिगरी की मेमरी को स्टोर करता है जो किसी प्राणी की स्थिति, डर और कामों के बारे में विस्तृत सूचनाएं मुहैया कराता है। लेकिन पीके जीटा मॉलिक्यूल का इन सूचनाओं की प्रोसेसिंग करने या इसे व्यक्त करने की क्षमता पर नियंत्रण नहीं होता। यह खोज संकेत देती है कि पीके जीटा मॉलिक्यूल ब्रेन की कंप्यूटिंग क्षमता को बरकरार रखते हुए दिमाग से कड़वी यादों को मिटाने में मददगार साबित हो सकता है।
इस स्टडी के नतीजे विस्तार से पब्लिक लाइब्रेरी ऑफ साइंस बायॉलजी के दिसंबर अंक में छपे हैं। इस पेपर को तैयार करने वाले साइंटिस्टों में एक डॉक्टर फेंटन के अनुसार, अगर आगे इस दिशा में रिसर्च कामयाब रही तो हम भविष्य में पीके जीटा मेमरी इरेजर के आधार पर दिमाग से बुरी यादों को मिटाने वाली कई थेरपी ढूंढ पाएंगे। लोगों के मन से नकारात्मक यादों को खत्म कर देने से उन्हें न केवल दुखद यादों से छुटकारा मिल पाएगा बल्कि यह डिप्रेशन, सामान्य रूप से पैदा होने वाली चिंता, फोबिया, सदमे के बाद पैदा होने वाली स्ट्रेस और ऐडिक्शन का इलाज करने में भी मददगार साबित होगा।
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