भारत में क्लिनिकल रिसर्च का बाजार लगभग 50 फीसदी की दर से बढ रहा है। अंतरराष्ट्रीय क्लिनिकल रिसर्च बाजार करीब 17।8 अरब डॉलर का है। भारत में वर्ष 2010 तक 50 हजार प्रोफेशनल्स की दरकार। डिप्लोमा, पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा आदि कोर्स उपलब्ध। भारत में शुरुआती वेतन प्रति माह 15 से 25 हजार रुपये।
जब कोई नई दवा बाजार मे उतारने की तैयारी होती है, तो दवा लोगों के लिए कितनी सुरक्षित और असरदार है, इसके लिए प्रयोगशाला परीक्षण होता है। भारत की जनसंख्या और हां उपलब्ध सस्ते प्रोफेशनल की वजह से क्लिनिकल का कारोबार तेजी से फलने-फूलने लगा है। यदि आप भी इस बढते हुए बाजार का हिस्सा बनना चाहते हैं, तो क्लिनिकल ट्रॉयल या क्लिनिकल रिसर्च से जुडे कोर्स कर सकते हैं।
क्लिनिकल इंडस्ट्री
भारत में क्लिनिकल ट्रॉयल इंडस्ट्री करीब 30 करोड डॉलर का है और वर्ष 2010 तक बढ कर यह इंडस्ट्री दो अरब डॉलर तक पहुंच जाने की उम्मीद है। गौरतलब है कि दुनिया की प्रमुख दवा कंपनियां अब क्लिनिकल रिसर्च संबंधी जरूरतों के लिए भारतीय बाजार की ओर रुख कर रही हैं।
योग्यता और कोर्स
क्लिनिकल रिसर्च के कोर्स में एंट्री के लिए विज्ञान में स्नातक होना जरूरी है। इसके अलावा, डी.फार्मा, बी.फार्मा, एम.फार्मा आदि के स्टूडेंट्स भी इस कोर्स में प्रवेश ले सकते हैं। कई प्रतिष्ठित संस्थानों से क्लिनिकल रिसर्च में डिप्लोमा, पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा आदि की जा सकती है।
कहां- कहां हैं संभावनाएं
एक अनुमान के मुताबिक, दुनिया भर में क्लिनिकल रिसर्च के क्षेत्र में करीब ढाई लाख से ज्यादा पद खाली हैं। वहीं योजना आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में क्लिनिकल रिसर्च के क्षेत्र में करीब 30 से 50 हजार प्रोफेशनल्स की कमी है। इंस्टीट्यूट ऑफ क्लिनिकल रिसर्च एजुकेशन ऐंड ट्रेनिंग, मुम्बई के असिस्टेंट डायरेक्टर अजीत मराठे कहते हैं, क्लिनिकल प्रोफेशनल्स की मांग और सप्लाई में भारी अंतर के कारण ही हमने अपना ट्रेनिंग इंस्टीटयूट शुरू किया है।
इसकी प्रमुख वजह यह है कि यहां प्रशिक्षित कर्मियों और प्रशिक्षण संस्थानों की बेहद कमी है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस उद्योग में बहुत अच्छा वेतन मिलता है, जो सालाना 40 हजार डॉलर से लेकर एक लाख डॉलर तक होता है। भारत में शुरुआती सालाना सैलॅरी 1।8 लाख से लेकर पांच लाख रुपये तक होती है। क्यूरी मानवता कैंसर सेंटर, नासिक के चीफ सर्जिकल ओनकोलॉजिस्ट डॉ. राज वी. नागरकर कहते हैं, भारतीय डॉक्टर अपनी प्रैक्टिस छोडकर क्लिनिकल ट्रॉयल के क्षेत्र में उतरना नहीं चाहते, क्योंकि यहां डॉक्टरी का पेशा ज्यादा सम्मानजनक माना जाता है।
बहुत से डॉक्टरों को क्लिनिकल ट्रायल और इसमें उपलब्ध अवसरों के बारे में पता ही नहीं है। मंदी के चलते फार्मास्युटिकल कंपनियां नए प्रोजेक्ट्स हाथ में भले ही न लें, लेकिन जो-जो प्रोजेक्ट चल रहे हैं, उनको पूरा करने के लिए अभी भी बडी संख्या में कुशल प्रोफेशनल्स की जरूरत है। मराठे कहते हैं, तेज गति से बढोत्तरी के बावजूद भारत में अच्छे क्लिनिकल प्रैक्टिस वाले प्रशिक्षित इंवेस्टिगेटर्स, बायो-एनालिटिकल साइंटिस्ट और फार्माकोकाइनेटिक्स की काफी कमी है।
प्रशिक्षण संस्थान
इंस्टीटयूट ऑफ क्लिनिकल रिसर्च एजुकेशन ऐंड ट्रेनिंग, मुम्बई, पूना और नासिक (पीजी डिप्लोमा इन क्लिनिकल रिसर्च, फार्माकोविजिलेंस और एमएसएसी इन क्लिनिकल रिसर्च) www.icreat.इन इंस्टीट्यूट ऑफ क्लिनिकल रिसर्च, मुम्बई, दिल्ली और बेंगलुरु (पीजी डिप्लोमा इन एडवांस क्लिनिकल रिसर्च) www.icriindia.कॉम क्लिनिकल रिसर्च एजुकेशन ऐंड मैनेजमेंट एकेडमी, मुम्बई, बेंगलुरु और दिल्ली (एडवांस पीजी डिप्लोमा इन क्लिनिकल रिसर्च आदि) www.cremaindia.org
क्लिनिकल इंडस्ट्री
भारत में क्लिनिकल ट्रॉयल इंडस्ट्री करीब 30 करोड डॉलर का है और वर्ष 2010 तक बढ कर यह इंडस्ट्री दो अरब डॉलर तक पहुंच जाने की उम्मीद है। गौरतलब है कि दुनिया की प्रमुख दवा कंपनियां अब क्लिनिकल रिसर्च संबंधी जरूरतों के लिए भारतीय बाजार की ओर रुख कर रही हैं।
योग्यता और कोर्स
क्लिनिकल रिसर्च के कोर्स में एंट्री के लिए विज्ञान में स्नातक होना जरूरी है। इसके अलावा, डी.फार्मा, बी.फार्मा, एम.फार्मा आदि के स्टूडेंट्स भी इस कोर्स में प्रवेश ले सकते हैं। कई प्रतिष्ठित संस्थानों से क्लिनिकल रिसर्च में डिप्लोमा, पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा आदि की जा सकती है।
कहां- कहां हैं संभावनाएं
एक अनुमान के मुताबिक, दुनिया भर में क्लिनिकल रिसर्च के क्षेत्र में करीब ढाई लाख से ज्यादा पद खाली हैं। वहीं योजना आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में क्लिनिकल रिसर्च के क्षेत्र में करीब 30 से 50 हजार प्रोफेशनल्स की कमी है। इंस्टीट्यूट ऑफ क्लिनिकल रिसर्च एजुकेशन ऐंड ट्रेनिंग, मुम्बई के असिस्टेंट डायरेक्टर अजीत मराठे कहते हैं, क्लिनिकल प्रोफेशनल्स की मांग और सप्लाई में भारी अंतर के कारण ही हमने अपना ट्रेनिंग इंस्टीटयूट शुरू किया है।
इसकी प्रमुख वजह यह है कि यहां प्रशिक्षित कर्मियों और प्रशिक्षण संस्थानों की बेहद कमी है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस उद्योग में बहुत अच्छा वेतन मिलता है, जो सालाना 40 हजार डॉलर से लेकर एक लाख डॉलर तक होता है। भारत में शुरुआती सालाना सैलॅरी 1।8 लाख से लेकर पांच लाख रुपये तक होती है। क्यूरी मानवता कैंसर सेंटर, नासिक के चीफ सर्जिकल ओनकोलॉजिस्ट डॉ. राज वी. नागरकर कहते हैं, भारतीय डॉक्टर अपनी प्रैक्टिस छोडकर क्लिनिकल ट्रॉयल के क्षेत्र में उतरना नहीं चाहते, क्योंकि यहां डॉक्टरी का पेशा ज्यादा सम्मानजनक माना जाता है।
बहुत से डॉक्टरों को क्लिनिकल ट्रायल और इसमें उपलब्ध अवसरों के बारे में पता ही नहीं है। मंदी के चलते फार्मास्युटिकल कंपनियां नए प्रोजेक्ट्स हाथ में भले ही न लें, लेकिन जो-जो प्रोजेक्ट चल रहे हैं, उनको पूरा करने के लिए अभी भी बडी संख्या में कुशल प्रोफेशनल्स की जरूरत है। मराठे कहते हैं, तेज गति से बढोत्तरी के बावजूद भारत में अच्छे क्लिनिकल प्रैक्टिस वाले प्रशिक्षित इंवेस्टिगेटर्स, बायो-एनालिटिकल साइंटिस्ट और फार्माकोकाइनेटिक्स की काफी कमी है।
प्रशिक्षण संस्थान
इंस्टीटयूट ऑफ क्लिनिकल रिसर्च एजुकेशन ऐंड ट्रेनिंग, मुम्बई, पूना और नासिक (पीजी डिप्लोमा इन क्लिनिकल रिसर्च, फार्माकोविजिलेंस और एमएसएसी इन क्लिनिकल रिसर्च) www.icreat.इन इंस्टीट्यूट ऑफ क्लिनिकल रिसर्च, मुम्बई, दिल्ली और बेंगलुरु (पीजी डिप्लोमा इन एडवांस क्लिनिकल रिसर्च) www.icriindia.कॉम क्लिनिकल रिसर्च एजुकेशन ऐंड मैनेजमेंट एकेडमी, मुम्बई, बेंगलुरु और दिल्ली (एडवांस पीजी डिप्लोमा इन क्लिनिकल रिसर्च आदि) www.cremaindia.org
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