शासन द्वारा स्पष्ट निर्देश जारी
प्रदेश में राज्य के बाहर के विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध पाठ्यक्रमों के संचालन के लिये स्टडी सेंटर्स, लर्निंग सेंटर्स या फेसिलिटेशन सेंटर्स संचालित नहीं किये जा सकेंगे। राज्य शासन द्वारा इस संबंध में स्पष्ट निर्देश जारी किये गये हैं। शासन ने विद्यार्थियों और अभिभावकों से अपील की है कि ऐसी संस्थाओं की वैधानिक स्थिति जानकर ही प्रवेश लें, जिससे बाद में कोई कठिनाई नही हो।
विगत दिनों राज्य शासन द्वारा ऐसी निजी शिक्षण संस्थाओं के विरुद्ध वैधानिक कार्यवाही की गई की, जिनके द्वारा राज्य के बाहर के विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध पाठ्यक्रमों के संचालन हेतु स्टडी सेंटर्स/लर्निंग सेंटर्स/फेसिलिटेशन सेंटर्स संचालित किए जा रहे थे या संस्थाओं द्वारा स्वयं के डिप्लोमा/सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम संचालित किए जा रहे थे।
इस संदर्भ में विद्यार्थियों, अभिभावकों एवं संस्थाओं को यह स्पष्ट किया जाता है कि जहां तक दूरस्थ शिक्षा का प्रश्न है, यदि विद्यार्थी राज्य के बाहर के किसी विश्वविद्यालय से संबद्ध पाठ्यक्रम में प्रवेश लेना चाहता है, तो वह ऑनलाइन पत्राचार के माध्यम से अथवा दूरस्थ शिक्षा परिषद् नई दिल्ली द्वारा निर्धारित की गई पद्धति से प्रवेश ले सकता है, परंतु प्रवेशित/पंजीयत विद्यार्थियों के अध्ययन-अध्यापन, मार्गदर्शन, पाठ्य सामग्री वितरण आदि के लिए भौतिक रूप से किसी भी प्रकार का केन्द्र मध्यप्रदेश राज्य के अंदर संचालित नहीं किया जाएगा। ये निर्देश आगामी सत्र 2011-12 के लिए 01 जुलाई 2011 से प्रभावशील माने जाएंगे।
विद्यार्थी दूरस्थ शिक्षा परिषद द्वारा निर्धारित पद्धति जैसे सैल्फ लर्निंग मटेरियल, ऑनलाइन स्टडी, पत्राचार आदि से अध्ययन कर सकेंगे एवं परीक्षाएं संबंधित विश्वविद्यालयों के अधिकार क्षेत्र में ही आयोजित की जाएंगी। स्पष्ट है कि जिस राज्य का विश्वविद्यालय होगा, उसी राज्य में परीक्षाएं आयोजित की जाएंगी।
आगामी सत्र 2011-12 से विद्यार्थियों के लिए, उनके हित में दोनों विकल्प खुले रहेंगे। प्रथम विकल्प के रूप में वह जिस विश्वविद्यालय सें संबद्ध पाठ्यक्रमों में प्रवेश ले चुके हैं उसे निरंतर करना चाहते हैं, तो वे संबंधित विश्वविद्यालय के अधिकार क्षेत्र में जाकर अपना अध्ययन निरंतर रख सकते हैं, और परीक्षाएं दे सकते हैं। दूसरे विकल्प के रूप में यदि विद्यार्थी मध्यप्रदेश राज्य के पारंपरिक विश्वविद्यालयों में प्रवेश लेना चाहते हैं तो विश्वविद्यालय के अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत विद्यार्थी को उचित सहायता प्रदान करने की कार्यवाही की जाएगी।
इसी प्रकार यदि संस्था निजी महाविद्यालय के रूप में अथवा निजी विश्वविद्यालय के रूप में मध्यप्रदेश में स्थापित होना चाहती है, तो वह विद्यमान वैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत आवेदन कर सकती है।
यह स्पष्ट किया गया है कि यदि किसी संस्था द्वारा स्वयं का तैयार किया गया डिग्री/डिप्लोमा/सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम संचालित किया जाता है, तो वह भी विश्वविद्यालयों के अधिनियम के प्रावधानों के प्रकाश में विधि मान्य नहीं है।
यदि विद्यार्थी अवैधानिक रूप से संचालित शिक्षण संस्था से जमा किए जा चुके किसी भी शुल्क की वापसी चाहता है, तो यह कार्यवाही विद्यार्थी/अभिभावक को अपने स्तर से वैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत करनी होगी। इसमें राज्य शासन का कोई दायित्व नहीं है।
उपरोक्तानुसार संचालित समस्त निजी संस्थाओं को अपना विवरण जैसे संचालित पाठ्यक्रम, विद्यार्थियों की संख्या आदि दर्ज करने के लिए वेबसाइट http://www.buhe.npnet.in/ पर प्रपत्र उपलब्ध कराया गया है, जिस पर उन्हें जानकारी देना अनिवार्य है, जिससे राज्य शासन विद्यार्थियों के हित में आवश्यक कार्यवाही कर सके। संस्थाओं को 15 जुलाई 2011 तक जानकारी देना अनिवार्य है।
यह सम्पूर्ण कार्यवाही विभिन्न संस्थाओं द्वारा इस विषय में दायर की गई याचिकाओं पर उच्च न्यायालय द्वारा पारित अंतिम निर्णय के अध्यधीन रहेगी।
विगत दिनों राज्य शासन द्वारा ऐसी निजी शिक्षण संस्थाओं के विरुद्ध वैधानिक कार्यवाही की गई की, जिनके द्वारा राज्य के बाहर के विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध पाठ्यक्रमों के संचालन हेतु स्टडी सेंटर्स/लर्निंग सेंटर्स/फेसिलिटेशन सेंटर्स संचालित किए जा रहे थे या संस्थाओं द्वारा स्वयं के डिप्लोमा/सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम संचालित किए जा रहे थे।
इस संदर्भ में विद्यार्थियों, अभिभावकों एवं संस्थाओं को यह स्पष्ट किया जाता है कि जहां तक दूरस्थ शिक्षा का प्रश्न है, यदि विद्यार्थी राज्य के बाहर के किसी विश्वविद्यालय से संबद्ध पाठ्यक्रम में प्रवेश लेना चाहता है, तो वह ऑनलाइन पत्राचार के माध्यम से अथवा दूरस्थ शिक्षा परिषद् नई दिल्ली द्वारा निर्धारित की गई पद्धति से प्रवेश ले सकता है, परंतु प्रवेशित/पंजीयत विद्यार्थियों के अध्ययन-अध्यापन, मार्गदर्शन, पाठ्य सामग्री वितरण आदि के लिए भौतिक रूप से किसी भी प्रकार का केन्द्र मध्यप्रदेश राज्य के अंदर संचालित नहीं किया जाएगा। ये निर्देश आगामी सत्र 2011-12 के लिए 01 जुलाई 2011 से प्रभावशील माने जाएंगे।
विद्यार्थी दूरस्थ शिक्षा परिषद द्वारा निर्धारित पद्धति जैसे सैल्फ लर्निंग मटेरियल, ऑनलाइन स्टडी, पत्राचार आदि से अध्ययन कर सकेंगे एवं परीक्षाएं संबंधित विश्वविद्यालयों के अधिकार क्षेत्र में ही आयोजित की जाएंगी। स्पष्ट है कि जिस राज्य का विश्वविद्यालय होगा, उसी राज्य में परीक्षाएं आयोजित की जाएंगी।
आगामी सत्र 2011-12 से विद्यार्थियों के लिए, उनके हित में दोनों विकल्प खुले रहेंगे। प्रथम विकल्प के रूप में वह जिस विश्वविद्यालय सें संबद्ध पाठ्यक्रमों में प्रवेश ले चुके हैं उसे निरंतर करना चाहते हैं, तो वे संबंधित विश्वविद्यालय के अधिकार क्षेत्र में जाकर अपना अध्ययन निरंतर रख सकते हैं, और परीक्षाएं दे सकते हैं। दूसरे विकल्प के रूप में यदि विद्यार्थी मध्यप्रदेश राज्य के पारंपरिक विश्वविद्यालयों में प्रवेश लेना चाहते हैं तो विश्वविद्यालय के अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत विद्यार्थी को उचित सहायता प्रदान करने की कार्यवाही की जाएगी।
इसी प्रकार यदि संस्था निजी महाविद्यालय के रूप में अथवा निजी विश्वविद्यालय के रूप में मध्यप्रदेश में स्थापित होना चाहती है, तो वह विद्यमान वैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत आवेदन कर सकती है।
यह स्पष्ट किया गया है कि यदि किसी संस्था द्वारा स्वयं का तैयार किया गया डिग्री/डिप्लोमा/सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम संचालित किया जाता है, तो वह भी विश्वविद्यालयों के अधिनियम के प्रावधानों के प्रकाश में विधि मान्य नहीं है।
यदि विद्यार्थी अवैधानिक रूप से संचालित शिक्षण संस्था से जमा किए जा चुके किसी भी शुल्क की वापसी चाहता है, तो यह कार्यवाही विद्यार्थी/अभिभावक को अपने स्तर से वैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत करनी होगी। इसमें राज्य शासन का कोई दायित्व नहीं है।
उपरोक्तानुसार संचालित समस्त निजी संस्थाओं को अपना विवरण जैसे संचालित पाठ्यक्रम, विद्यार्थियों की संख्या आदि दर्ज करने के लिए वेबसाइट http://www.buhe.npnet.in/ पर प्रपत्र उपलब्ध कराया गया है, जिस पर उन्हें जानकारी देना अनिवार्य है, जिससे राज्य शासन विद्यार्थियों के हित में आवश्यक कार्यवाही कर सके। संस्थाओं को 15 जुलाई 2011 तक जानकारी देना अनिवार्य है।
यह सम्पूर्ण कार्यवाही विभिन्न संस्थाओं द्वारा इस विषय में दायर की गई याचिकाओं पर उच्च न्यायालय द्वारा पारित अंतिम निर्णय के अध्यधीन रहेगी।
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