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Wednesday, January 12, 2011

विवेकानन्द ने मानवता की सेवा के लिए युवाओं का आह्‌वान्‌ किया था

विवेकानन्द जयन्ती के उपलक्ष्य में दर्शन-विभाग, डॉ० हरीसिंह गौर विश्‍वविद्यालय, सागर में एक परिचर्चा का आयोजन किया गया, जिसमें विभाग के शिक्षकों, शोध-छात्रों और स्नातक-स्नातकोत्तर के छात्र-छात्राओं ने भाग लिया।  इस कार्यक्रम में विभागाध्यक्ष प्रो० ए.पी. दुबे ने अध्यक्षता की और इतिहास विभाग के डॉ० डी.सी. शर्मा ने मुख्‍य-आतिथ्य किया। विभाग की वरिष्ठ व्याख्‍याता डॉ० सविता गुप्ता ने मंच-संचालन किया।  विभाग की शोध-छात्रा कु. अंजु ब्राह्‌मण ने स्वामी विवेकानन्द के जीवन-वृत्त एवं उनके दार्शनिक विचारों पर प्रकाश डाला।        
इस अवसर पर दर्शन-विभाग के अध्यक्ष प्रो० ए.पी. दुबे ने बताया कि विवेकानन्द का जन्म-दिवस युवा-दिवस के रूप में क्यों मनाया जाता है।  उन्होंने कहा कि २४-२५ साल की आयु में स्वामी विवेकानन्द ने अद्वैत वेदान्त के ऐसे गम्भीर विषयों को न केवल आत्मसात्‌ किया, वरन्‌ पूरी दुनियॉं में इनका प्रचार-प्रसार करके भारतीय संस्कृति की गरिमा को उजागर किया।  स्वामी विवेकानन्द ने मानवता की सेवा के लिए युवाओं का आह्‌वान्‌ किया था और कहा था कि ''उठो! जागो! और तब तक चलते रहो जब तक कि लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाय।''  स्वामीजी का यह मूल मंत्र था कि व्यक्ति को समस्त जगत्‌ के प्राणियों के उत्कर्ष एवं उनकी मुक्ति के लिए प्रयत्नशील होना चाहिए।  परिचर्चा में डॉ० राजेश चौरसिया, डॉ० नरेन्द्र बौद्ध, डॉ० मोह० एजाज खान, शोध-छात्र उमेश सराफ, मनोज गुरू, चन्द्रशेखर नामदेव, राजाराम, शालिगराम अहिरवार, गोविन्द सिंह, अजय चौधरी, रमाकान्त तिवारी आदि ने अपने वक्तव्य प्रस्तुत किए।

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