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Sunday, January 3, 2010

सेमेस्टर पद्धति से विश्वविद्यालयों के परीक्षा परिणामों में उल्लेखनीय सुधार

 सबसे अच्छा परिणाम डा. हरीसिंह विश्वविद्यालय सागर का
प्रदेश के विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में सेमेस्टर प्रणाली से परीक्षा परिणाम में उल्लेखनीय सुधार आया है। उच्च शिक्षा मंत्री श्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने सेमेस्टर पद्धति लागू होने के बाद परीक्षा परिणामों की समीक्षा की। मध्यप्रदेश में सेमेस्टर पद्धति 2008-09 से लागू की गई है।

वार्षिक परीक्षा पद्धति में सत्र 2007-08 के दौरान महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में स्नातक परीक्षा में परिणाम 55.6 प्रतिशत था जबकि सेमेस्टर प्रणाली में 2008-09 के द्वितीय सेमेस्टर में यह बढ़कर 81.12 प्रतिशत हो गया है। इसी प्रकार स्नातकोत्तर परीक्षा परिणामों में वार्षिक परीक्षा पद्धति में उत्तीर्ण प्रतिशत 64.88 प्रतिशत था जो द्वितीय सेमेस्टर में बढ़कर 80.48 प्रतिशत हो गया है।
समीक्षा में पाया गया कि वर्ष 2008-09 के द्वितीय सेमेस्टर के स्नातक उत्तीर्ण प्रतिशत में सबसे अच्छा परिणाम डा. हरीसिंह विश्वविद्यालय सागर का 85.16 प्रतिशत रहा है। विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन का उत्तीर्ण प्रतिशत 80.83, जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर का 79.12 प्रतिशत, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर का 79.65 प्रतिशत, देवी अहिल्याबाई विश्वविद्यालय इंदौर का 80.06 प्रतिशत, अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय का 71.24 प्रतिशत और बरकतउल्ला विश्वविद्यालय भोपाल का उत्तीर्ण प्रतिशत 78 प्रतिशत रहा है।
समीक्षा के अनुसार स्नातकोत्तर परीक्षाओं के द्वितीय सेमेस्टर में सबसे अच्छा परिणाम 91.67प्रतिशत अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा का रहा है। सागर विश्वविद्यालय का 87.42 प्रतिशत, उज्जैन विश्वविद्यालय का 87.11 प्रतिशत, ग्वालियर विश्वद्यालय का 79.39 प्रतिशत, जबलपुर विश्वविद्यालय का 81.34 प्रतिशत, इंदौर विश्वविद्यालय का 7704 प्रतिशत, बरकतउल्ला विश्वविद्यालय का 7278 प्रतिशत रहा है।
उच्च शिक्षा मंत्री ने सेमेस्टर प्रणाली से परीक्षा परिणामों में आ रहे सुधार पर संतोष व्यक्त करते हुये कम प्रतिशत वाले विश्वविद्यालय और महाविद्यालयों में शिक्षण के गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देने के निर्देश दिये हैं। उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश देश का ऐसा राज्य है जहां एक साथ पूरे प्रदेश में सेमेस्टर पद्धति लागू की गई है। इस पद्धति में शैक्षणिक सत्र को दो समान हिस्सों में बाटकर विद्यार्थियों को अधिक से अधिक अकादमिक गतिविधियों में शामिल करते हुये प्रगति का सतत मूल्यांकन संभव हुआ है। इस पद्धति में आंतरिक परीक्षा के मूल्यांकन के साथ ही एक प्रोजेक्ट वर्क भी विद्यार्थियों को दिया जाता है।

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