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Wednesday, February 11, 2009

गरीब भी रोक नहीं सकी शिल्पा को बुंलदियां छूने से...




सपनों को जीवित रखने के लिए जिद और जीवटता की जरूरत होती है। बताशे बेचकर जीवनयापन करने वाली शकुंतला में यह जिद एवं जीवटता दोनों थी, इन गुणो सहारे ही तंगहाली के बावजूद अपने बच्चों को सफलता दिलाने के उसके सपने साकार हो सके हैं। सपने को पूरा करने में उसे बेटी शिल्पा का भी भरपूर साथ मिला, जिसने अपनी लगन एवं मेहनत के बल पर वर्ष 2008 में भारतीय प्रशासनिक सेवा 'आईएएस' की परीक्षा उत्तीर्ण कर गरीब मां की इच्छाओं को हकीकत का जामा पहना दिया।
आईएएस की परीक्षा में 55वां स्थान हासिल करने वाली व मुश्किलों से हार नहीं मानने वाली शिल्पा और उसकी मां शकुंतला आज दोस्तों-रिश्तेदारों और आसपास के लोगों के लिए प्रेरणा बन गई हैं। पड़ोसी व रिश्तेदार भी अपने बच्चों को नई ऊंचाइयां छूते देखना चाहते हैं।
यही वजह है कि छुट्टी पर शिल्पा जब घर आती है, तो प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्र और उनके अभिभावक सलाह लेने उसके पास पहुंच जाते हैं। शिल्पा की बहन शिखा भी आईएएस की तैयारी कर रही है, जबकि बहन ऋतु, रजनी व भाई राहुल भी बड़ा अधिकारी बनना चाहते हैं।
कुछ वर्षो में न्यू अशोक नगर दिल्ली में बहुत कुछ बदल गया है, लेकिन नहीं बदला तो शिल्पा की मां शकुंतला का बताशे बेचना। इस काम को वह छोड़ना भी नहीं चाहती, क्योंकि इसी व्यवसाय ने तंगहाली में उन्हें सहारा दिया था। वह आज भी अशोक नगर के ए ब्लॉक मंदिर के पास बताशे बेचती है।
वैसे,शकुंतला का परिवार शुरू से गरीब नहीं था, लेकिन शादी के बाद शकुंतला और उसके पति श्रवण धीरे-धीरे गरीबी की दलदल में धंसते चले गए। ऊपर से पांच बच्चों की पढ़ाई का बोझ उनकी कमर तोड़ रहा था। लेकिन 85 प्रतिशत अंकों के साथ दसवीं पास करने के बाद बड़ी लड़की शिल्पा ने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया, जबकि मां बताशे बेचती व पिता के साथ दुकान में हाथ बंटाती। इसके बावजूद उतनी कमाई नहीं हो पाती, जिससे बच्चों की सभी जरूरतें पूरी की जा सकें। लेकिन आज शिल्पा के आईएएस बन जाने के बाद मानो शकुंतला को तमाम खुशियां मिल गई हैं। हां, यह इच्छा जरूर है कि उसके दूसरे बच्चे भी बड़े अधिकारी बन जाएं।

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