अमेरिकी वैज्ञानिकों ने नारियल का ऐसा इस्तेमाल खोज निकाला है, जो शायद अभी तक किसी ने भी नहीं सोचा होगा। अमेरिका के टेक्सस में रिसर्चर नारियल का इस्तेमाल कार बनाने में कर रहे हैं। बेलर यूनिवर्सिटी में नारियल की जटाओं के इस्तेमाल से कार की डिग्गी का लाइनर, फ्लोरबोर्ड और कार के दरवाजे के अंदरूनी कवर बनाए गए हैं। नारियल के इन रेशों को कंपोजिट मटीरियल में इस्तेमाल होने वाले सिंथेटिक पॉलिस्टर फाइबर की जगह लगाया गया है।
इस पहल का सबसे सकारात्मक पक्ष यह है कि नारियल बड़ी संख्या में मिल सकता है। यह इक्वेटर के किनारे स्थित फिलिपीन, इंडोनेशिया और भारत जैसे देशों में मिलने वाला अक्षय संसाधन है। आमतौर पर नारियल के छिलके को या तो जला दिया जाता है या यों ही फेंक दिया जाता है। इससे वातावरण में कचरा बढ़ता है। इस प्रोजेक्ट को लीड करने वाले इंजीनियरिंग प्रफेसर वॉल्टर ब्रैडले का कहना है, ऐसा पहली बार हुआ है कि नारियल के रेशे का इस्तेमाल गाड़ी के पुर्जे बनने में हुआ है।
ब्रैडले के एक स्टूडंट का कहना है कि घाना में नारियल के फेंके गए इन छिलकों के बडे़-बड़े ढेर लग जाते हैं। इससे सेहत संबंधी कई खतरे पैदा हो जाते हैं, क्योंकि इनमें पानी भर जाता है जहां मलेरिया के लिए जिम्मेदार मच्छर पनपने लगते हैं। बैडले कहते हैं, हम नारियल उगाने वाले गरीब किसानों की मदद के लिए कचरे को पैसों में बदल रहे हैं। हमारा असल मकसद है नारियल की मांग को इतना बढ़ा देना कि मार्किट में उसकी कीमत ऊंची हो जाए। इस समय दुनिया भर में 1.1 करोड़ नारियल के किसान हैं, जिनकी औसतन सालाना आय लगभग 25 हजार रुपये है।
नारियल से कार के हिस्से बनाने के लिए उसके खोल नहीं, बल्कि जटाओं को इकट्ठा किया जाता है। ये जटाएं रेशों और कोकोनट डस्ट से मिलकर बने होते हैं। कोकोनट डस्ट पहले तो स्पंजी होती है, लेकिन सूखने पर यह धूल के कणों की तरह सिकुड़ जाती है। ऐसी हालत में यह अपने वजन से 10 गुना ज्यादा पानी सोख सकती है।
ब्रैडले कहते हैं, ये रेशे बहुत ताकतवर होते हैं और हर तरह के काम में इस्तेमाल हो सकते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि ये एनवायरनमेंट फ्रेंडली होते हैं। कंपोजिट मटीरियल बनाने के लिए इन्हें पॉलिप्रोपाइलीन के रेशों के साथ मिला कर हॉट प्रेस के जरिए मनचाहे आकार में ढाल लिया जाता है। यह सभी इंडस्ट्रियल टेस्ट में खरे उतरे हैं। इसके अलावा इनमें आसानी से आग नहीं लगती, साथ ही जहरीला धुआं भी नहीं निकलता।
ब्रैडले के एक स्टूडंट का कहना है कि घाना में नारियल के फेंके गए इन छिलकों के बडे़-बड़े ढेर लग जाते हैं। इससे सेहत संबंधी कई खतरे पैदा हो जाते हैं, क्योंकि इनमें पानी भर जाता है जहां मलेरिया के लिए जिम्मेदार मच्छर पनपने लगते हैं। बैडले कहते हैं, हम नारियल उगाने वाले गरीब किसानों की मदद के लिए कचरे को पैसों में बदल रहे हैं। हमारा असल मकसद है नारियल की मांग को इतना बढ़ा देना कि मार्किट में उसकी कीमत ऊंची हो जाए। इस समय दुनिया भर में 1.1 करोड़ नारियल के किसान हैं, जिनकी औसतन सालाना आय लगभग 25 हजार रुपये है।
नारियल से कार के हिस्से बनाने के लिए उसके खोल नहीं, बल्कि जटाओं को इकट्ठा किया जाता है। ये जटाएं रेशों और कोकोनट डस्ट से मिलकर बने होते हैं। कोकोनट डस्ट पहले तो स्पंजी होती है, लेकिन सूखने पर यह धूल के कणों की तरह सिकुड़ जाती है। ऐसी हालत में यह अपने वजन से 10 गुना ज्यादा पानी सोख सकती है।
ब्रैडले कहते हैं, ये रेशे बहुत ताकतवर होते हैं और हर तरह के काम में इस्तेमाल हो सकते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि ये एनवायरनमेंट फ्रेंडली होते हैं। कंपोजिट मटीरियल बनाने के लिए इन्हें पॉलिप्रोपाइलीन के रेशों के साथ मिला कर हॉट प्रेस के जरिए मनचाहे आकार में ढाल लिया जाता है। यह सभी इंडस्ट्रियल टेस्ट में खरे उतरे हैं। इसके अलावा इनमें आसानी से आग नहीं लगती, साथ ही जहरीला धुआं भी नहीं निकलता।
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