सूरज की लपटें आपके लिए काफी आम होंगी। लेकिन ये लपटें सोलर सिस्टम के सबसे ताकतवर विस्फोटों से पैदा होती हैं। ये लपटें करोड़ों हाइड्रोजन बमों के धमाकों के बराबर होती हैं। आकाशीय विस्फोटों की जगह कोई वस्तु नहीं पहुंच सकती। यहां तक कि आसपास का हर ऐटम तक पूरी तरह झुलस जाता है।
कैलिफॉर्निया में इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी के रिचर्ड मवाल्ट कहते हैं कि हमने सूरज की लपटों में हाइड्रोजन बमों के फटने से पैदा हुई फुहार सी देखी। रिचर्ड कहते हैं कि इन ऐटमों के पैदा होने की वजह समझना काफी दिलचस्प हो सकता है। हम सूरज की लपटों के बारे में पूरी जानकारी जुटा सकते हैं। पिछली बार 5 दिसंबर 2006 को आकाशीय विस्फोट देखे गए थे।
सूरज के आस-पास पूर्वी हिस्से में यह धमाका हुआ। रिक्टर स्केल पर इसे काफी तीव्र माना गया। जिस ब्लास्ट की रैंक एक्स-1 होती हैं उसे सबसे ताकतवर माना जाता है। दो साल पहले हुआ धमाका एक्स-9 रैंक का था। पिछले 30 सालों में यह सबसे खतरनाक लपटें थीं।
इस तरह के ब्लास्ट से काफी अधिक ऊर्जा वाले पार्टिकल निकलते हैं और इससे सैटलाइटों और अंतरिक्षयात्रियों को नुकसान हो सकता है। नासा के स्पेसक्राफ्ट ने पता लगाया कि यह वास्तव में हाइड्रोजन ऐटमों का विस्फोट होता है। मवाल्ट कहते हैं कि कोई और तत्व नहीं था। सबसे पहले तो इन धमाकों ने साइंटिस्टों को काफी चौंका दिया था। लेकिन अब मवाल्ट और उनके सहयोगियों का दावा है कि वह इनका रहस्य सुलझाने के काफी करीब पहुंच गए हैं। उन्होंने ट्विन सोलर टेरेस्ट्रियल रिलेशंस ऑब्जर्वेटरी (स्टीरियो) नाम के स्पेसक्राफ्ट से इन विस्फोटों का अध्ययन किया।
सूरज के आस-पास पूर्वी हिस्से में यह धमाका हुआ। रिक्टर स्केल पर इसे काफी तीव्र माना गया। जिस ब्लास्ट की रैंक एक्स-1 होती हैं उसे सबसे ताकतवर माना जाता है। दो साल पहले हुआ धमाका एक्स-9 रैंक का था। पिछले 30 सालों में यह सबसे खतरनाक लपटें थीं।
इस तरह के ब्लास्ट से काफी अधिक ऊर्जा वाले पार्टिकल निकलते हैं और इससे सैटलाइटों और अंतरिक्षयात्रियों को नुकसान हो सकता है। नासा के स्पेसक्राफ्ट ने पता लगाया कि यह वास्तव में हाइड्रोजन ऐटमों का विस्फोट होता है। मवाल्ट कहते हैं कि कोई और तत्व नहीं था। सबसे पहले तो इन धमाकों ने साइंटिस्टों को काफी चौंका दिया था। लेकिन अब मवाल्ट और उनके सहयोगियों का दावा है कि वह इनका रहस्य सुलझाने के काफी करीब पहुंच गए हैं। उन्होंने ट्विन सोलर टेरेस्ट्रियल रिलेशंस ऑब्जर्वेटरी (स्टीरियो) नाम के स्पेसक्राफ्ट से इन विस्फोटों का अध्ययन किया।
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