सागर।भाषा। अगर भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) की सिफारिशों को माना जाए तो कहा जा सकता है कि मध्यप्रदेश के छठे व बुंदेलखंड के इकलौते मेडिकल कालेज में नए सत्र में भी पढ़ाई शुरू नहीं हो सकेगी। बताया जा रहा है कि पिछले महीने सागर दौरे पर आई एमसीआई की टीम को यहां इतनी खामियां नजर आर्इं कि उसकी रपट पर परिषद ने केन्द्र सरकार से यहां नए सत्र से पढ़ाई शुरु करने की अनुमति नहीं देने की सिफारिश की है।
एमसीआई की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक सागर मेडिकल कालेज की जांच करने पांच व छह जून को सागर पहुंचे दल ने परिषद को सौंपी अपनी जांच रपट में 27 बिंदुओं के तहत निर्माणाधीन चिकित्सा महाविद्यालय परियोजना में कई खामियां पाईं।
14 नवम्बर 2007 को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा सागर में मेडिकल कालेज की नींव रखे जाने के मौके पर मध्यप्रदेश के तत्कालीन चिकित्सा शिक्षा मंत्री गौरीशंकर शेजवार ने कहा था कि 42 साल के अंतराल के बाद प्रदेश सरकार द्वारा खोला जा रहा मेडिकल कालेज आला दर्जे का होगा।
शेजवार ने तब बताया था कि करीब 30 एकड़ क्षेत्रफल में 145 करोड़ की लागत से बनने वाले सागर मेडिकल कालेज में पहला सत्र 2008-09 में ही शुरु करने की कोशिश की जाएगी। कालेज में 150 छात्रों के लिए तीन लेक्चर हाल 15 प्रयोगशालाएं, 16 प्रदर्शन कक्ष व सात संग्रहालय बनाएं जाएंगे। इसके अलावा आधुनिकतम पुस्तकालय स्थापित किया जाएगा जिसमें 10 हजार से ज्यादा पुस्तकें होंगी। लेकिन मेडिकल कालेज के निर्माण कार्य में शुरु से ही बाधाएं आती रहीं। सबसे बड़ी मुश्किल सीमेंट व लोहे जैसे भवन निर्माण संबंधी सामग्री की कीमतें बढ़ने से आई और इससे निर्माण कार्य में काफी पिछड़ गया।
इसी उठापठक के चलते एमसीआई का दौरा भी एक से ज्यादा बार टाला गया, लेकिन जून 2009 माह में सागर दौरे पर आए एमसीआई के निरीक्षण दल ने परिषद को सौंपी अपनी रपट में बताया है कि यहां भवनों के निर्माण, संसाधनों व स्टाफ की उपलब्ध व गुणवत्ता कुछ भी संतोषजनक नहीं है। रपट में 27 बिंदुओं के तहत इस प्रोजेक्ट की ढेरों खामियां गिनाई गई हैं।
एमसीआई की वेबसाइट पर कार्यपरिषद की 10-11 जून को दिल्ली में हुई बैठक की रपट मौजूद है। परिषद के अध्यक्ष डा. केतन देसाई द्वारा अनुमोदित व सचिव लेफ्टिनेंट कर्नल सेवानिवृत डा. एआरएन शीतलावद द्वारा 16 जून 2009 को जारी इस रपट में सागर मेडिकल कालेज से संबंधित विवरण में बताया गया है कि महाविद्यालय में शैक्षणिक स्टाफ में 45.45 फीसदी की व रेसीडेंट्स में 88.09 फीसदी की कमी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि महाविद्यालय के पास स्थाई डीन नहीं है और एक साल के प्रशासनिक अनुभव वाले सिविल सर्जन को ही जिला चिकित्सालय के अधीक्षक का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया है।
महाविद्यालय में मौजूद संसाधनों के बारे में भी एमसीआई की टीम ने गंभीर खुलासे किए हैं। टीम की रिपोर्ट के मुताबिक बाह्य चिकित्सा कक्ष में स्थान एक्सरे जैसे बुनियादी जांच उपकरणों तथा प्रयोगशालाओं में चिकित्सीय सामग्री का अभाव है। 31 दिसंबर 2005 के बाद से रक्त बैंक के लाइसेंस का नवीनीकरण नहीं कराया गया। पुस्तकालय के नाम पर एक हाल है जिसमें 10 कुर्सियां हैं। न ही मेडिकल जर्नल की सदस्यता ली गई है और न ही यहां इंटरनेट या कम्प्यूटर की सुविधा है। शिक्षण के लिए दृश्य एवं श्रव्य उपकरण उपलब्ध नहीं हैं।
रिपोर्ट में यह भी उजागर किया गया है कि छात्रावास, रहवास, छात्र-छात्राओं के कामन रूम तैयार नहीं हैं। जिला चिकित्सालय में पैरामेडिकल स्टाफ नसरें व स्टाफ बाय का अभाव है। मेडिकल कालेज के लिए तैनात चिकित्सक ओपीडी ड्यूटी नहीं देते। एमसीआई की टीम ने रिपोर्ट में ऐसी दर्जनों खामिया गिनाई गई हैं।
सागर मेडिकल कालेज के कार्यकारी डीन डा। एससी तिवारी ने हालांकि, सागर मेडिकल कालेज के बारे में एमसीआई द्वारा केन्द्र सरकार को किसी भी प्रकार की सिफारिशें किए जाने के सिलसिले में कोई भी आधिकारिक जानकारी होने से इंकार किया है। तिवारी ने फोन पर " भाषा " बताया कि एमसीआई की सिफारिशें अंतिम नहीं होती हैं, सरकार अगर चाहे तो उनसे हटकर भी निर्णय ले सकती है।
14 नवम्बर 2007 को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा सागर में मेडिकल कालेज की नींव रखे जाने के मौके पर मध्यप्रदेश के तत्कालीन चिकित्सा शिक्षा मंत्री गौरीशंकर शेजवार ने कहा था कि 42 साल के अंतराल के बाद प्रदेश सरकार द्वारा खोला जा रहा मेडिकल कालेज आला दर्जे का होगा।
शेजवार ने तब बताया था कि करीब 30 एकड़ क्षेत्रफल में 145 करोड़ की लागत से बनने वाले सागर मेडिकल कालेज में पहला सत्र 2008-09 में ही शुरु करने की कोशिश की जाएगी। कालेज में 150 छात्रों के लिए तीन लेक्चर हाल 15 प्रयोगशालाएं, 16 प्रदर्शन कक्ष व सात संग्रहालय बनाएं जाएंगे। इसके अलावा आधुनिकतम पुस्तकालय स्थापित किया जाएगा जिसमें 10 हजार से ज्यादा पुस्तकें होंगी। लेकिन मेडिकल कालेज के निर्माण कार्य में शुरु से ही बाधाएं आती रहीं। सबसे बड़ी मुश्किल सीमेंट व लोहे जैसे भवन निर्माण संबंधी सामग्री की कीमतें बढ़ने से आई और इससे निर्माण कार्य में काफी पिछड़ गया।
इसी उठापठक के चलते एमसीआई का दौरा भी एक से ज्यादा बार टाला गया, लेकिन जून 2009 माह में सागर दौरे पर आए एमसीआई के निरीक्षण दल ने परिषद को सौंपी अपनी रपट में बताया है कि यहां भवनों के निर्माण, संसाधनों व स्टाफ की उपलब्ध व गुणवत्ता कुछ भी संतोषजनक नहीं है। रपट में 27 बिंदुओं के तहत इस प्रोजेक्ट की ढेरों खामियां गिनाई गई हैं।
एमसीआई की वेबसाइट पर कार्यपरिषद की 10-11 जून को दिल्ली में हुई बैठक की रपट मौजूद है। परिषद के अध्यक्ष डा. केतन देसाई द्वारा अनुमोदित व सचिव लेफ्टिनेंट कर्नल सेवानिवृत डा. एआरएन शीतलावद द्वारा 16 जून 2009 को जारी इस रपट में सागर मेडिकल कालेज से संबंधित विवरण में बताया गया है कि महाविद्यालय में शैक्षणिक स्टाफ में 45.45 फीसदी की व रेसीडेंट्स में 88.09 फीसदी की कमी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि महाविद्यालय के पास स्थाई डीन नहीं है और एक साल के प्रशासनिक अनुभव वाले सिविल सर्जन को ही जिला चिकित्सालय के अधीक्षक का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया है।
महाविद्यालय में मौजूद संसाधनों के बारे में भी एमसीआई की टीम ने गंभीर खुलासे किए हैं। टीम की रिपोर्ट के मुताबिक बाह्य चिकित्सा कक्ष में स्थान एक्सरे जैसे बुनियादी जांच उपकरणों तथा प्रयोगशालाओं में चिकित्सीय सामग्री का अभाव है। 31 दिसंबर 2005 के बाद से रक्त बैंक के लाइसेंस का नवीनीकरण नहीं कराया गया। पुस्तकालय के नाम पर एक हाल है जिसमें 10 कुर्सियां हैं। न ही मेडिकल जर्नल की सदस्यता ली गई है और न ही यहां इंटरनेट या कम्प्यूटर की सुविधा है। शिक्षण के लिए दृश्य एवं श्रव्य उपकरण उपलब्ध नहीं हैं।
रिपोर्ट में यह भी उजागर किया गया है कि छात्रावास, रहवास, छात्र-छात्राओं के कामन रूम तैयार नहीं हैं। जिला चिकित्सालय में पैरामेडिकल स्टाफ नसरें व स्टाफ बाय का अभाव है। मेडिकल कालेज के लिए तैनात चिकित्सक ओपीडी ड्यूटी नहीं देते। एमसीआई की टीम ने रिपोर्ट में ऐसी दर्जनों खामिया गिनाई गई हैं।
सागर मेडिकल कालेज के कार्यकारी डीन डा। एससी तिवारी ने हालांकि, सागर मेडिकल कालेज के बारे में एमसीआई द्वारा केन्द्र सरकार को किसी भी प्रकार की सिफारिशें किए जाने के सिलसिले में कोई भी आधिकारिक जानकारी होने से इंकार किया है। तिवारी ने फोन पर " भाषा " बताया कि एमसीआई की सिफारिशें अंतिम नहीं होती हैं, सरकार अगर चाहे तो उनसे हटकर भी निर्णय ले सकती है।
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