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Tuesday, August 12, 2008

अब आसान नहीं होगा पीएचडी करना....

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग पीएचडी के नियमों मे नए बदलाव करने जा रहा है। इसके नियम तैयार हो गए हैं और जल्द ही इस सिलसिले मे प्रपत्र जारी होने वाला है। नई व्यवस्था के तहत विद्यार्थियों को पीएचडी का पंजीयन कराने से पहले एक प्रवेश प्रक्रिया व एक साल की पढ़ाई से गुजरना होगा। इस परीक्षा मे सफल होने के बाद ही पीएचडी की थीसिस लिखी जा सकेगी। इस सारी प्रक्रिया मे कम से कम तीन साल का वक्त लगेगा।
हालांकि यह नई व्यवस्था उन पर लागू नहीं होगी जिनकी पीएचडी का पंजीयन हो चुका है। लेकिन नए पंजीयन के लिए आवेदन करने वालों को इन नियमों से गुजरना ही पड़ेगा। यूजीसी के सदस्य डॉ० शशि राय के मुताबिक नए नीतिगत बदलावों के बाद पीएचडी कार्यक्रम कम से कम तीन साल का होगा।
नई व्यवस्था के मुताबिक पीएचडी के आवेदन करने वालों के लिए एक अखिल भारतीय स्तर की परीक्षा को पास करना होगा। इसमे विद्यार्थियों को यह भी बताना होगा की वे किस विश्वविद्यालय से पीएचडी करना चाहते हैं। परीक्षा मे सफल होने के बाद उम्मीदवार को चुने हुए विवि मे एक साल तक दो विषयों-रिसर्च मेथेडालॉजी तथा पीएचडी से संबंधित सामान्य अवेयरनेस की पढ़ाई करनी पड़ेगी। इस पढ़ाई को पूरी करने के बाद उसे एक बार फिर दो सेमिस्टर मे इन विषयों की परीक्षा को पास करना होगा। इस परीक्षा मे भी सफल हुए परीक्षार्थियों को ही पीएचडी मे रजिस्ट्रेशन का मौका मिलेगा।
लेकिन राष्ट्रीय अभियोग्यता परीक्षा यानि नेट पास उम्मीदवार को पीएचडी के पंजीयन कराने मे इस प्रक्रिया से नहीं गुजरना पड़ेगा।
पीएचडी रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया मे किए जा रहे इस बदलाव के बारे में श्री राय ने बताया कि बड़ी तादाद में फर्जी तरीके से पीएचडी करने व पीएचडी की गुणवत्ता मे आ रही गिरावट पर राष्ट्रीय स्तर पर चिंता की जा रही थी। उसके मद्देनजर ही काफी सोच विचार कर यूजीसी ने यह निर्णय लिया है।
गौरतलब है कि वर्तमान मे पीएचडी करने के इच्छुक उम्मीदवार को एक फार्म भर कर गाईड के पास जमा करना होता है। फीस जमा करने की तारीख से पीएचडी शुरू मानी जाने लगती है। छह महीने के अंदर आरडीसी यानि रिसर्च डीन कमेटी की बैठक होती है जो संबंधित विषय मे फेरबदल या किसी संशोधन के लिए सुझाव दे सकती है। यदि आरडीसी विषय को मंजूर कर देती है तो पीएचडी का पंजीयन पूर्ण माना जाता है। पंजीकरण के बाद उम्मीदवार को कम से कम 24 महीने का समय देना अनिवार्य है, जबकि उच्च शिक्षा वाले शिक्षक के लिए यह अवधि न्यूनतम 18 माह रहती है।

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