अमेरिका जैसे दुनिया के सबसे ज्यादा विकसित देश में भी काम करने वाले वैज्ञानिकों मे से 20 फीसदी वैज्ञानिक भारतीय हैं। विज्ञान का क्षेत्र काफी विस्तृत हैं। इस क्षेत्र मे हर दिन नई खोज व नए प्रयोग हो रहे हैं। युवाओं के लिए विज्ञान के क्षेत्र मे भविष्य बनाने की अपार संभावनाएं मौजूद है।
यह विचार भारत के प्रसिद्ध लेजर वैज्ञानिक एवं इंदौर स्थित परमाणु उर्जा विभाग के पूर्व निदेशक प्रो0 डीडी भवालकर ने सागर मे विवि के स्वर्णजयंती सभागार में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के उपलक्ष्य मे ''एडवांसेज इन लेजर एण्ड स्पेक्ट्रोस्कोपी'' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार में व्यक्त किए।
लेजर वैज्ञानिक श्री भवालकर ने लेजर तकनीक और स्पेक्ट्रास्कोपी के बढ़ते प्रयोग को मानव के लिए हितकारी बताते हुए इसके बहुआयामी उपयोग के तरीके खोजे जाने पर जोर दिया। उन्होने बताया कि वर्ष 1961 मे पहली लेजर ईजाद होने के बाद से ही 50 सालों मे यूरोपीय देशों सहित भारत मे लेजर की उपयोगिता पर अनेक महत्वपूर्ण शोध हुए हैं। शल्य चिकित्सा के क्षेत्र मे लेजर मील का पत्थर साबित हुई है। आने वाले समय में लेजर तकनीक, एक्सरे जांच का स्थान ले लेगी।
राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के मौके पर प्रो० भवालकर ने विज्ञान के क्षेत्र मे कैरियर बनाने मे लगे युवाओं को सलाह दी कि दृढ़ विश्वास व अनुशासन के बिना इस क्षेत्र मे सफलता हासिल करना आसान नहीं है। उन्होने युवा वैज्ञानिकों को बताया कि विज्ञान के क्षेत्र मे किसी भी विषय पर काम करने के लिए सबसे पहली जरुरत है दिमाग मे एक अच्छे आईडिया का आना।
भारत सरकार द्वारा विज्ञान के क्षेत्र को दी जा रही प्राथमिकताओं का जिक्र करते हुए वयोवृद्ध वैज्ञानिक प्रो० भवालकर ने कहा कि देश मे युवा वैज्ञानिकों के लिए अनुसंधान के सभी संसाधन मौजूद हैं। इसके अलावा गुणवत्ता पूर्ण अनुसंधान के लिए अगर कुछ जरूरी है तो वह है युवाओं मे कछ कर गुजरने का जज्बा व अच्छे विचार।
डॉ० हरिसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय के भौतिकी एवं इलेक्ट्रानिक्स विभाग के तत्वावधन में आयोजित इस सेमिनार के संयोजनक एवं भारतीय संस्था लेजर एंड स्पेक्ट्रास्कोपी के अध्यक्ष प्रो० आरए सिंह के मुताबिक सेमिनार में भाभा परमाणु शोघ केन्द्र, राष्ट्रीय भौतिक विज्ञान प्रयोशाला, बनारस हिंदू विवि सहित लखनऊ, हैदराबाद , अजमेर आदि स्थानों से विषय विशेषज्ञ भाग ले रहे हैं।
लेजर वैज्ञानिक श्री भवालकर ने लेजर तकनीक और स्पेक्ट्रास्कोपी के बढ़ते प्रयोग को मानव के लिए हितकारी बताते हुए इसके बहुआयामी उपयोग के तरीके खोजे जाने पर जोर दिया। उन्होने बताया कि वर्ष 1961 मे पहली लेजर ईजाद होने के बाद से ही 50 सालों मे यूरोपीय देशों सहित भारत मे लेजर की उपयोगिता पर अनेक महत्वपूर्ण शोध हुए हैं। शल्य चिकित्सा के क्षेत्र मे लेजर मील का पत्थर साबित हुई है। आने वाले समय में लेजर तकनीक, एक्सरे जांच का स्थान ले लेगी।
राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के मौके पर प्रो० भवालकर ने विज्ञान के क्षेत्र मे कैरियर बनाने मे लगे युवाओं को सलाह दी कि दृढ़ विश्वास व अनुशासन के बिना इस क्षेत्र मे सफलता हासिल करना आसान नहीं है। उन्होने युवा वैज्ञानिकों को बताया कि विज्ञान के क्षेत्र मे किसी भी विषय पर काम करने के लिए सबसे पहली जरुरत है दिमाग मे एक अच्छे आईडिया का आना।
भारत सरकार द्वारा विज्ञान के क्षेत्र को दी जा रही प्राथमिकताओं का जिक्र करते हुए वयोवृद्ध वैज्ञानिक प्रो० भवालकर ने कहा कि देश मे युवा वैज्ञानिकों के लिए अनुसंधान के सभी संसाधन मौजूद हैं। इसके अलावा गुणवत्ता पूर्ण अनुसंधान के लिए अगर कुछ जरूरी है तो वह है युवाओं मे कछ कर गुजरने का जज्बा व अच्छे विचार।
डॉ० हरिसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय के भौतिकी एवं इलेक्ट्रानिक्स विभाग के तत्वावधन में आयोजित इस सेमिनार के संयोजनक एवं भारतीय संस्था लेजर एंड स्पेक्ट्रास्कोपी के अध्यक्ष प्रो० आरए सिंह के मुताबिक सेमिनार में भाभा परमाणु शोघ केन्द्र, राष्ट्रीय भौतिक विज्ञान प्रयोशाला, बनारस हिंदू विवि सहित लखनऊ, हैदराबाद , अजमेर आदि स्थानों से विषय विशेषज्ञ भाग ले रहे हैं।
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