प्रो० राजेन्द्र पी अग्रवाल ने मप्र के सबसे पुराने विश्वविद्यालय डॉ० हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय के 33 वें कुलपति के रूप मे शनिवार को सुबह 11 बजे पदभार ग्रहण कर लिया है। नवनियुक्त कुलपति ने निवृतमान कुलपति प्रो० आरएस कसाना से पदभार ग्रहण करने से पूर्व डॉ० हरिसिंह गौर की प्रतिमा पर माल्यापर्ण एवं समाधि स्थल पर जाकर पुष्पांजलि अर्पित की। प्रो० अग्रवाल सागर विवि के कुलपति नियुक्त होने के पूर्व आईआईटी रूड़की मे इलेक्ट्रानिक्स एवं कम्प्यूटर इंजीनियरिंग विभाग मे अध्यक्ष एवं डीन के रूप मे कार्यरत थे। उनकी नियुक्ति पदभार ग्रहण करने की तारीख 23 अगस्त से चार वर्षों के लिए की गई है।
कम्प्यूटर एवं इलेक्ट्रानिक्स के विशेषज्ञ कुलपति ने सागर विश्वविद्यालय मे अपनी काम की प्राथमिकताओं की चर्चा करते हुए पत्रकारों को बताया कि विश्वविद्यालय मे अनुशासन का माहौल बनाने के अलावा नए विभाग व वोकेशनल पाठ्यक्रम शुरू करने पर विशेष जोर दिया जाएगा।
सागर विश्वविद्यालय को हाल ही मे मिले केन्द्रीय विश्वविद्यलाय के दर्जे के सिलसिले मे नए कुलपति ने कहा कि व्यक्तिगत प्रयासों के आधार पर देश मे स्थापित तीन विश्वविद्यालयों -सर सैयद अहमद के अलीगढ़ मुस्लिम िवश्वविद्यालय व मदन मोहन मालवीय के बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के बाद डॉ० हरिसिंह गौर द्वारा स्थापित मप्र का सागर विश्वविद्यालय ही केन्द्रीय दर्जे से वंचित बना हुआ था। अब इसका भी विकास अन्य केन्द्रीय विवि की तरह तेजी से होगा। लेकिन डॉ० हरिसिंह के प्रयास सर सैयद अहमद व मदन मोहन मालवीय के प्रयासों से ज्यादा महान इसलिए हैं कि उन्होने विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए चंदा नहीं लिया बल्कि अपनी जीवन भर की कमाई दान में दे दी।
गौरतलब है कि मप्र के राज्यपाल व कुलाधिपति कार्यालय ने 28 जुलाई 2008 को ही आदेश क्रमांक 1189/जीएस/यूए-1/06 के द्वारा प्रो० अग्रवाल को सागर विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त कर दिया था। लेकिन उनकी ओर से पदभार ग्रहण करने मे हुई देरी की वजह से विश्वविद्यालय मे अटकलों का बाजार गरम होने लगा था कि नवनियुक्त कुलपति सागर आने के इच्छुक नहीं है। लेकिन प्रो० अग्रवाल के अचानक सागर पहुंचकर पदभार ग्रहण कर लेने से ऐसी तमाम अफवाहें कोरी साबित हो गईं हैं।
सागर जिले की बीना तहसील मे ही 04 मार्च 1945 मे जन्मे प्रो० अग्रवाल ने अपनी स्नातक की उपाधि 1984 मे आगरा विश्वविद्याय से, बीई आनर्स की उपाधि जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज, मास्टर ऑफ इंजीनियरिंग की डिग्री 1977 मे पूना से प्राप्त की। वे 1970 मे रूड़की मे लेक्चरर नियुक्त हुए व यहीं 1985 मे प्रोफेसर बन गए।
इसके अलावा प्रो० अग्रवाल को 1974 मे कॉमनवेल्थ स्कालरशिप, 1985 व 1993 मे पोस्ट डॉक्टोरल फैलोशिप मिली। साथ ही वो 1981 से 1984 तक ईराक के सैन्य तकनीकी महाविद्यालय, बगदाद मे भारतीय विशेषज्ञ के रूप मे भी कार्यारत रहे।
कम्प्यूटर विशेषज्ञ प्रो० अग्रवाल के 150 से अधिक पुस्तक, शोघ-पत्र व लेख राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं मे भी प्रकाशित हो चुके हैं। नवनियुक्त कुलपति प्रो० अग्रवाल रक्षा अनुसंधान संगठन, संघ व राज्य लोक सेवा आयोग, अखिल भारतीय तकनीकी परषिद के लिए गठित समितियों मे विषय विशेषज्ञ के रूप मे शामिल रहे हैं।
अमेरिका, यूके, आस्ट्रिया, हंगरी, फिनलौण्ड, डेनमार्क,स्वीडन, नेपाल सहित यूरोप की अकादमिक यात्राएं कर चुके प्रो० अग्रवाल दिसंबर 2005 से जुलाई 2007 तक बुंदेलखण्ड विश्वविद्याय झांसी के कुलपति भी रह चुके हैं।
कम्प्यूटर एवं इलेक्ट्रानिक्स के विशेषज्ञ कुलपति ने सागर विश्वविद्यालय मे अपनी काम की प्राथमिकताओं की चर्चा करते हुए पत्रकारों को बताया कि विश्वविद्यालय मे अनुशासन का माहौल बनाने के अलावा नए विभाग व वोकेशनल पाठ्यक्रम शुरू करने पर विशेष जोर दिया जाएगा।
सागर विश्वविद्यालय को हाल ही मे मिले केन्द्रीय विश्वविद्यलाय के दर्जे के सिलसिले मे नए कुलपति ने कहा कि व्यक्तिगत प्रयासों के आधार पर देश मे स्थापित तीन विश्वविद्यालयों -सर सैयद अहमद के अलीगढ़ मुस्लिम िवश्वविद्यालय व मदन मोहन मालवीय के बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के बाद डॉ० हरिसिंह गौर द्वारा स्थापित मप्र का सागर विश्वविद्यालय ही केन्द्रीय दर्जे से वंचित बना हुआ था। अब इसका भी विकास अन्य केन्द्रीय विवि की तरह तेजी से होगा। लेकिन डॉ० हरिसिंह के प्रयास सर सैयद अहमद व मदन मोहन मालवीय के प्रयासों से ज्यादा महान इसलिए हैं कि उन्होने विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए चंदा नहीं लिया बल्कि अपनी जीवन भर की कमाई दान में दे दी।
गौरतलब है कि मप्र के राज्यपाल व कुलाधिपति कार्यालय ने 28 जुलाई 2008 को ही आदेश क्रमांक 1189/जीएस/यूए-1/06 के द्वारा प्रो० अग्रवाल को सागर विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त कर दिया था। लेकिन उनकी ओर से पदभार ग्रहण करने मे हुई देरी की वजह से विश्वविद्यालय मे अटकलों का बाजार गरम होने लगा था कि नवनियुक्त कुलपति सागर आने के इच्छुक नहीं है। लेकिन प्रो० अग्रवाल के अचानक सागर पहुंचकर पदभार ग्रहण कर लेने से ऐसी तमाम अफवाहें कोरी साबित हो गईं हैं।
सागर जिले की बीना तहसील मे ही 04 मार्च 1945 मे जन्मे प्रो० अग्रवाल ने अपनी स्नातक की उपाधि 1984 मे आगरा विश्वविद्याय से, बीई आनर्स की उपाधि जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज, मास्टर ऑफ इंजीनियरिंग की डिग्री 1977 मे पूना से प्राप्त की। वे 1970 मे रूड़की मे लेक्चरर नियुक्त हुए व यहीं 1985 मे प्रोफेसर बन गए।
इसके अलावा प्रो० अग्रवाल को 1974 मे कॉमनवेल्थ स्कालरशिप, 1985 व 1993 मे पोस्ट डॉक्टोरल फैलोशिप मिली। साथ ही वो 1981 से 1984 तक ईराक के सैन्य तकनीकी महाविद्यालय, बगदाद मे भारतीय विशेषज्ञ के रूप मे भी कार्यारत रहे।
कम्प्यूटर विशेषज्ञ प्रो० अग्रवाल के 150 से अधिक पुस्तक, शोघ-पत्र व लेख राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं मे भी प्रकाशित हो चुके हैं। नवनियुक्त कुलपति प्रो० अग्रवाल रक्षा अनुसंधान संगठन, संघ व राज्य लोक सेवा आयोग, अखिल भारतीय तकनीकी परषिद के लिए गठित समितियों मे विषय विशेषज्ञ के रूप मे शामिल रहे हैं।
अमेरिका, यूके, आस्ट्रिया, हंगरी, फिनलौण्ड, डेनमार्क,स्वीडन, नेपाल सहित यूरोप की अकादमिक यात्राएं कर चुके प्रो० अग्रवाल दिसंबर 2005 से जुलाई 2007 तक बुंदेलखण्ड विश्वविद्याय झांसी के कुलपति भी रह चुके हैं।
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